चंडीगढ़, 28 मई: अमेरिका में पढ़ाई करने का सपना संजोए लाखों छात्रों के लिए एक अप्रत्याशित और झकझोर देने वाली खबर सामने आई है। अमेरिकी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए वीज़ा इंटरव्यू की नई अपॉइंटमेंट्स को फिलहाल स्थगित कर दिया है। यह रोक विशेष रूप से स्टूडेंट वीज़ा (F), वोकेशनल वीज़ा (M) और एक्सचेंज विज़िटर वीज़ा (J) पर लागू की गई है। इस फैसले का उद्देश्य अमेरिकी सुरक्षा मानकों को और अधिक सख्त करना बताया गया है, जिसके तहत अब छात्रों की डिजिटल गतिविधियों—विशेषकर सोशल मीडिया—की गहराई से जांच की जाएगी।
नई नीति का उद्देश्य क्या है?
विश्वस्त सूत्रों और अमेरिकी मीडिया नेटवर्क पोलिटिको के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने दुनिया भर के अपने सभी दूतावासों और कांसुलेट्स को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जब तक नई गाइडलाइन जारी नहीं होती, तब तक किसी भी प्रकार की वीज़ा इंटरव्यू अपॉइंटमेंट्स निर्धारित न की जाएं। यह फैसला तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया है और इस पर हस्ताक्षर अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो द्वारा किए गए हैं।
यह निर्देश ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका के कॉलेज और विश्वविद्यालय कैंपसों में इज़रायल और गाज़ा के बीच जारी संघर्ष को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं। इनमें अंतरराष्ट्रीय छात्रों की भागीदारी भी देखी गई है, जिससे अमेरिकी सरकार की चिंताएं और बढ़ गई हैं।
डिजिटल निगरानी की तैयारी
इस नीतिगत बदलाव के तहत अब केवल पारंपरिक दस्तावेज़ ही नहीं, बल्कि छात्र के डिजिटल व्यवहार—जैसे फेसबुक, ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उनकी गतिविधियों—का भी मूल्यांकन किया जाएगा। सरकार की मंशा है कि देश में प्रवेश करने वाला हर विदेशी नागरिक अमेरिका की कानूनी और सामाजिक मर्यादाओं का पालन करे।
विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने इस नई नीति का बचाव करते हुए कहा कि, “यह किसी खास समूह को लक्षित करने का प्रयास नहीं है। अमेरिका की प्राथमिकता देश की आंतरिक सुरक्षा है, और इसमें किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
शिक्षा और अर्थव्यवस्था पर संभावित असर
इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव केवल छात्रों तक सीमित नहीं हैं। अमेरिकी विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों और शिक्षा नीति से जुड़े विश्लेषकों का मानना है कि यह अस्थायी रोक अमेरिका की उच्च शिक्षा प्रणाली और उससे जुड़े आर्थिक ढांचे को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है।
2023-24 के शैक्षणिक सत्र में अमेरिका में पढ़ रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या 11 लाख से अधिक थी। इन छात्रों ने अकेले उस साल अमेरिकी अर्थव्यवस्था में लगभग 44 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष योगदान दिया था। ऐसे में यदि यह नीति लंबी अवधि तक जारी रहती है, तो इससे विश्वविद्यालयों की कमाई, स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर भी प्रशासन की नजर
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी जैसे प्रमुख संस्थानों के प्रति भी सख्त रुख अपनाया है। हार्वर्ड पर आरोप लगाया गया कि वह यहूदी विरोध को बढ़ावा दे रहा है, और विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने की नीति को भी चुनौती दी गई। हालांकि, अमेरिकी संघीय अदालत ने इस निर्णय पर फिलहाल अस्थायी रोक लगा दी है।
भविष्य की तस्वीर क्या हो सकती है?
भारत, चीन, कोरिया, ब्राजील और नाइजीरिया जैसे देशों के छात्र लंबे समय से अमेरिकी उच्च शिक्षा संस्थानों में अध्ययन कर रहे हैं और वहां के शैक्षिक, सांस्कृतिक और आर्थिक ढांचे का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अमेरिका ऐसी प्रतिबंधात्मक नीतियों को आगे भी जारी रखता है, तो इससे उसकी वैश्विक शैक्षिक नेतृत्व की छवि को गंभीर नुकसान हो सकता है।
कई छात्रों और उनके परिवारों के मन में अब सवाल उठ रहे हैं: क्या वे अमेरिका के लिए अपनी उच्च शिक्षा की योजनाएं जारी रखें या किसी अन्य देश जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूके या जर्मनी की ओर रुख करें?