भाईदूज का त्योहार, जो दिवाली के बाद मनाया जाता है, भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है। यह दिन खासतौर पर भाई के घर जाकर बहन द्वारा उसे तिलक करके भोजन कराने की परंपरा के लिए जाना जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जो यमराज और उनकी बहन यमुनाजी के बीच के स्नेह को दर्शाती है, और यही इस दिन का धार्मिक महत्व भी है।
यमराज और यमुनाजी की कथा
कहानी के अनुसार, भगवान सूर्य और देवी संज्ञा की संतानें यमराज और यमुनाजी थीं। जब यमराज ने यमपुरी में निवास किया, तब यमुनाजी गोलोक में चली गईं। दोनों भाई-बहन के बीच लंबे समय तक मुलाकात नहीं हुई, जिससे यमुनाजी उदास थीं। महर्षि नारद ने यमराज को बताया, और उन्होंने कार्तिक शुक्ल द्वितीया को अपनी बहन के घर जाने का निश्चय किया। यमुनाजी ने भाई का स्वागत किया, उन्हें स्नान-पूजन के बाद स्वादिष्ट भोजन परोसा। यमराज इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने यमुनाजी से वरदान मांगा। यमुनाजी ने कहा कि आप हर साल इसी दिन मेरे घर आएं, और जो बहन इस दिन अपने भाई का सम्मान करेगी, उसे आपके भय से मुक्त रहना चाहिए। यमराज ने यह वरदान दिया, और इसी तरह भाई दूज की परंपरा की शुरुआत हुई।
भाईदूज का महत्व
भाईदूज पर बहनें अपने भाइयों को तिलक करके उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। भाई का बहन के घर भोजन करना इस दिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे भाई-बहन के रिश्ते में स्नेह और आपसी समझ बढ़ती है, और परिवार में एकता बनी रहती है। यह विश्वास भी है कि इस दिन भोजन करने से यमराज का भय दूर होता है और भाई की उम्र में वृद्धि होती है।
पूजा विधि –
बहन भाई को तिलक करके उसकी आरती करती है और दीर्घायु की कामना करती है।
भाई को मिठाई खिलाई जाती है और उसके बाद स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है।
भाई भी बहन को उपहार देकर अपने प्रेम और आदर का इजहार करता है।
भाईदूज ना केवल एक त्योहार है, बल्कि यह भाई-बहन के रिश्ते को और गहरा करने का अवसर भी है। यह दिन स्नेह, खुशियों और पारिवारिक बंधन का जश्न मनाने का होता है।