राज्यसभा में वक्फ बिल की पारिती: 128 के पक्ष में और 95 के विरोध में वोट, राजनीति का रंग बदला
चंडीगढ़, 4 अप्रैल: राज्यसभा में वक्फ (संशोधन) बिल का बड़ा मंज़र पूरा हुआ, जिसने भारतीय राजनीति के आंगन में फिर से गरमा-गरम बहसों को जन्म दिया। लोकसभा में सहजता से पारित होने के बाद, यह बिल राज्यसभा में भी अपने अंतिम चरण में पहुंचा और 128 वोटों के पक्ष में और 95 वोटों के विरोध में पास हो गया।
राज्यसभा में बिल के पास होने का क्या मतलब है?
यह बिल अब राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा, जिससे यह कानून का रूप ले सकेगा। यह संशोधन 1995 के वक्फ एक्ट में बदलाव लाने के लिए लाया गया है, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है।
विवाद के केंद्र में क्या है?
बिल के विवादास्पद प्रावधानों ने बहस को और भी गरमाया। कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
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गैर-मुस्लिम सदस्यों का अनिवार्य समावेश: केंद्रीय वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्डों में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जाएगा।
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धार्मिक पहचान की शर्त: वक्फ में संपत्ति दान करने के लिए व्यक्ति को कम से कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का पालन करना आवश्यक होगा।
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विवादों का निपटारा: अब वक्फ संपत्ति के विवादों को वक्फ ट्रिब्यूनल के बजाय सरकारी अधिकारियों द्वारा सुलझाया जाएगा।
बहस का हंगामा: सरकार बनाम विपक्ष
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किरन रिजिजू (अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री): उन्होंने जोर देकर कहा कि यह बिल धर्म से नहीं, बल्कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और पारदर्शिता से संबंधित है। उनका कहना था कि वक्फ बोर्ड के मामलों में गैर-मुस्लिमों का हस्तक्षेप नहीं होगा।
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मल्लिकार्जुन खड़गे (कांग्रेस अध्यक्ष): उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह बिल विवादों को जन्म देगा और इसे राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
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अमित शाह (गृह मंत्री): उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वे इस मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं और कहा कि यह बिल मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्गों के लिए फायदेमंद होगा।
वैश्विक तुलना: मुस्लिम देशों में वक्फ का प्रबंधन कैसे होता है?
जेपी नड्डा ने सवाल उठाया, “मुस्लिम देशों में वक्फ संपत्तियों को डिजिटलीकरण और पारदर्शिता के साथ प्रबंधित किया जा रहा है, तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता?” इस बयान ने बहस को और तीव्र कर दिया, क्योंकि विपक्ष ने इसे धार्मिक हस्तक्षेप के रूप में देखा।
विपक्ष की क्या रणनीति थी?
बीजू जनता दल ने “विवेक वोट” का सहारा लिया और अपने सांसदों को व्हिप से मुक्त किया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि सभी विपक्षी दल एकजुट नहीं थे। कांग्रेस और अन्य दलों ने सरकार के खिलाफ स्थिति ली, लेकिन कुछ छोटे दलों ने मौन रहकर या अलग रास्ता अपनाकर रणनीतिक चालें चलीं।
आगे क्या होगा?
अब यह बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। यदि राष्ट्रपति इसकी मंजूरी देते हैं, तो यह एक कानूनी रूप ले लेगा, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा।
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राष्ट्रपति की स्वीकृति: यह अंतिम चरण है।
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वक्फ ट्रिब्यूनल की भूमिका: अब इसकी जगह सरकारी अधिकारी विवादों का निपटारा करेंगे।
वक्फ बिल का पारित होना सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति का एक बड़ा संकेत है। यह दर्शाता है कि सरकार कैसे संवेदनशील मुद्दों को राजनीतिक रणनीति के साथ संभालती है और विपक्ष अपनी स्थिति को लेकर कितनी विविधता दिखाता है।