जापान के कृषि मंत्री तकु एतो का चावल पर विवादित बयान बना राजनीतिक तूफान, देना पड़ा इस्तीफा

चंडीगढ़, 21 मई: जापान में बीते कुछ महीनों से बढ़ती चावल की कीमतों ने जनता को पहले ही परेशान कर रखा है। ऐसे में कृषि मंत्री तकु एतो की एक संवेदनहीन टिप्पणी ने आग में घी डालने का काम किया। सार्वजनिक आलोचना और राजनीतिक दबाव के बीच एतो को आखिरकार बुधवार को इस्तीफा देना पड़ा

क्या कहा था मंत्री ने?

मामला उस वक्त गरमाया जब एतो ने सागा प्रान्त में एक सेमिनार के दौरान मज़ाकिया लहजे में कहा कि उन्हें कभी चावल खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि उनके समर्थक उन्हें उपहार में चावल भेजते रहते हैं

यह बात ऐसे समय में कही गई जब देश के लाखों नागरिक महंगे चावल के कारण परेशान हैं। ऐसे में उनकी टिप्पणी को जनता की तकलीफों के प्रति असंवेदनशील माना गया और चारों ओर से तीखी आलोचना शुरू हो गई।

इस्तीफे में मांगी माफ़ी

बढ़ते विरोध को देखते हुए एतो ने प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा को अपना इस्तीफा सौंप दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। इस्तीफा देने के बाद एतो ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए कहा:

“जब उपभोक्ता चावल की बढ़ती कीमतों से जूझ रहे हों, तब मेरा बयान निहायत ही अनुचित था। मैं इस पर खेद व्यक्त करता हूं। मैंने अपना बयान वापस ले लिया है और स्पष्ट करता हूं कि मैं भी चावल खुद खरीदता हूं।”

कौन लेंगे स्थान?

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, एतो की जगह पूर्व पर्यावरण मंत्री शिंजिरो कोइजुमी को नया कृषि मंत्री नियुक्त किया जा सकता है। कोइजुमी युवा और लोकप्रिय नेता माने जाते हैं, जिनसे उम्मीद की जा रही है कि वे जनता का विश्वास बहाल कर सकेंगे।

चावल की किल्लत कैसे शुरू हुई?

जापान में चावल की समस्या की जड़ें अगस्त 2024 से जुड़ी हैं, जब सरकार ने एक संभावित भूकंप की चेतावनी जारी करते हुए नागरिकों को भंडारण की सलाह दी थी। इस चेतावनी के बाद लोगों ने बड़ी मात्रा में चावल खरीदना शुरू किया, जिससे बाजार में भारी कमी आ गई।

शुरुआत में शरद ऋतु की फसल से थोड़ी राहत मिली, लेकिन 2025 की शुरुआत में मांग और आपूर्ति का संतुलन फिर बिगड़ गया। कीमतें एक बार फिर आसमान छूने लगीं।

कीमतों के पीछे क्या हैं कारण?

विशेषज्ञों के अनुसार, चावल की इस किल्लत और महंगाई के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं:

  • 2023 की भीषण गर्मी ने फसल को काफी नुकसान पहुंचाया।

  • उर्वरकों और उत्पादन लागत में बढ़ोतरी ने किसानों पर दबाव बढ़ाया।

  • सरकार की दीर्घकालिक चावल नीति को भी कई विशेषज्ञ असफल मानते हैं, क्योंकि उसमें आपात स्थितियों के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं रही।

 राजनीतिक हलचल भी तेज

विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर तीखा रुख अपनाया। उन्होंने एतो के बयान को ‘जनता का अपमान’ बताया और उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की चेतावनी दी थी। जनता के गुस्से और विपक्ष के दबाव को देखते हुए सरकार के पास एतो का इस्तीफा स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।