दीपावली की रात करें ये खास पाठ, माँ लक्ष्मी होंगी प्रसन्न और चमक जाएगी किस्मत

Diwali Shri Suktam Path Maa Lakshmi

Shri Suktam Paath : Diwali के पर्व पर हर घर में भगवान गणेश और Maa Lakshmi की पूजा का विशेष महत्व होता है।

हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि, आनंद और वैभव की देवी माना गया है, इसलिए इस दिन उन्हें प्रसन्न करना शुभ माना जाता है।

दीवाली की रात को शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें और श्री सूक्त का पाठ करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।

मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का यह सबसे प्रभावी और शुभ तरीका माना गया है।

Shri Suktam Paath से करें Maa Lakshmi को प्रसन्न –

श्री सूक्त का पाठ करते समय, पूजा स्थल पर मां लक्ष्मी की तस्वीर या श्री यंत्र की स्थापना करना अत्यंत शुभ माना जाता है। श्री सूक्त में पंद्रह विशेष छंद होते हैं, जिनमें अक्षर, शब्दांश और शब्दों के उच्चारण से मां लक्ष्मी के ध्वनि स्वरूप का आह्वान किया जाता है।

श्री सूक्त, ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अंत में स्थित है, जिसमें कुल 15 ऋचाएं हैं और माहात्म्य सहित 16 ऋचाएं मानी जाती हैं।

सोलहवें मंत्र को फलश्रुति कहा जाता है, जो पाठ का महत्व और इसके लाभ बताता है।

इसके अलावा, ग्यारह अन्य मंत्र परिशिष्ट रूप में उपलब्ध हैं। इस पाठ को “लक्ष्मी सूक्तम्” भी कहा जाता है

और इसे लक्ष्मी जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए अचूक माना गया है।

श्री सूक्त का पाठ करने के कुछ महत्वपूर्ण नियम और लाभ:

पाठ की दिशा: श्री सूक्त का पाठ पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना शुभ माना जाता है।

गौरी-गणेश पूजन: पाठ शुरू करने से पहले गौरी और गणेश का पूजन करें, इससे कार्य में सफलता मिलती है।

लाभ: श्री सूक्त का पाठ घर में समृद्धि, धन, स्वास्थ्य, और आनंद लाने का कारक है।

कर्ज-मुक्ति: मां लक्ष्मी की कृपा से दरिद्रता, गरीबी और कर्ज से मुक्ति मिलती है।

मान-सम्मान में वृद्धि: इस पाठ से समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।

घी का दीपक: पाठ के समापन पर मां लक्ष्मी के समक्ष शुद्ध घी का दीपक अवश्य जलाएं, इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है ।

इस Diwali आप भी श्री सूक्त का पाठ करें और चमकाएं अपनी किस्मत –

।। अथ श्री-सूक्त मंत्र पाठ ।।

1- ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।

2- तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।।

3- अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।

4- कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।

5- चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।

6- आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।।

7- उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।

8- क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।

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9- गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।

10- मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।

11- कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।

12- आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।

13- आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।

14- आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।।

15- तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।

16- य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत् ।।

।। इति समाप्ति ।।