चंडीगढ़, 7 मई: कला, संगीत और आत्मा के मेल का नाम है रूह फेस्टिवल, और बुधवार की शाम ने इस बात को फिर से सच साबित कर दिया। हर दिन की तरह इस शाम ने भी दर्शकों को कुछ नया, कुछ गहराई से महसूस कराने वाला अनुभव दिया। इस बार की संध्या दो बेहद अलग लेकिन एक-दूसरे को संपूर्ण बनाती प्रस्तुतियों के नाम रही – एक ओर था ऊर्जा से भरपूर फिरदौस बैंड, और दूसरी ओर भावनाओं में डूबा देने वाली भुवन शर्मा की ग़ज़लें।
फिरदौस बैंड: ताल, तरंग और जोश का विस्फोट
जैसे ही फिरदौस बैंड ने मंच संभाला, पूरा माहौल जैसे जाग उठा। युवा दर्शकों की भीड़ तालियों और हूटिंग से भर गई। बैंड ने जिस तरह शास्त्रीय और समकालीन संगीत का मिश्रण पेश किया, उसने यह साबित कर दिया कि संगीत की कोई सीमा नहीं होती – वह दिल से निकलकर दिल तक जाता है।
हर प्रस्तुति पर श्रोताओं का जोश बढ़ता गया, और जब ड्रम की थाप और गिटार की धुनें गूंजीं, तो पूरा स्थल थिरक उठा।
भुवन शर्मा: ग़ज़ल की नर्मियत और रूहानी गहराई
शाम का दूसरा भाग एकदम अलग एहसास लेकर आया। जब भुवन शर्मा मंच पर आए, तो पूरा माहौल संजीदा और सुकूनभरा हो गया। उन्होंने अपने विशेष अंदाज़ में ग़ज़लों की बुनावट शुरू की, और श्रोताओं को एक-एक शब्द में खो जाने का मौका दिया।
‘आज जाने की ज़िद न करो…’ जैसे कालजयी गीत जब उनकी मखमली आवाज़ में गूंजे, तो सुनने वालों की आंखें नम हो गईं।
‘कौन था वो जिसको देखा नहीं…’ और ‘रफ़्ता रफ़्ता हो गए…’ जैसी ग़ज़लों ने लोगों को उनके अपने अहसासों और यादों में डुबो दिया।
उनकी प्रस्तुति के बीच में कहे गए शब्द –
“संगीत वही जो रूह तक पहुंचे, और ग़ज़ल वही जो दिलों को झिंझोड़ दे।”
ने कार्यक्रम की आत्मा को शब्द दे दिए।
रूह की संध्या, हर दिल का उत्सव
रूह फेस्टिवल की यह संध्या महज एक संगीत कार्यक्रम नहीं थी, यह आत्मा से आत्मा तक पहुंचने वाला संवाद था। जहां एक ओर फिरदौस बैंड ने शरीर को थिरकाया, वहीं भुवन शर्मा ने आत्मा को भीतर तक हिला दिया। युवा से लेकर बुजुर्ग तक, हर किसी ने इस अनूठे संगम का भरपूर आनंद लिया।