चंडीगढ़, 14 मई: हॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री से एक बेहद दुखद समाचार सामने आया है। मशहूर निर्देशक, पटकथा लेखक और ऑस्कर विजेता रॉबर्ट बेंटन का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँसें न्यूयॉर्क के मैनहटन स्थित अपने घर में लीं। बेंटन का जाना न केवल एक निर्देशक की विदाई है, बल्कि एक युग का अंत भी है जिसने सिनेमा को मानवीय संवेदनाओं की गहराई से परिचित कराया।
‘क्रेमर वर्सेज क्रेमर’ से अंतरराष्ट्रीय पहचान
रॉबर्ट बेंटन को सबसे अधिक प्रसिद्धि 1979 की क्लासिक फिल्म ‘क्रेमर वर्सेज क्रेमर’ से मिली थी। यह फिल्म उस समय के लिए बेहद संवेदनशील विषय — एक पिता और बच्चे के रिश्ते और तलाक की जटिलताओं — पर आधारित थी। डस्टिन हॉफमैन और मेरिल स्ट्रीप की दमदार अदाकारी से सजी इस फिल्म ने 5 ऑस्कर अवॉर्ड्स जीते, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (बेंटन), और सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक शामिल थे।
यह फिल्म रॉबर्ट बेंटन के फिल्मी नजरिए को बखूबी दर्शाती है—भावनाओं की सूक्ष्मता, रिश्तों की पेचीदगी और इंसानियत की बुनियादी समझ। उन्होंने सिनेमा को एक नई भाषा दी, जिसमें अभिनय के साथ-साथ कहानी भी बोलती थी।
करियर की शुरुआत और सृजनात्मक यात्रा
रॉबर्ट बेंटन का जन्म टेक्सास के वैक्साहाची शहर में हुआ था। उन्हें फिल्मों का शौक अपने पिता से विरासत में मिला। उन्होंने टेक्सास यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने बतौर आर्ट डायरेक्टर एस्क्वायर मैगज़ीन में की, लेकिन रचनात्मकता की उड़ान उन्हें फिल्मों की ओर खींच लाई।
उनकी पहली बड़ी सफलता 1967 की फिल्म ‘बोनी एंड क्लाइड’ के साथ आई, जिसे उन्होंने लिखा था। यह फिल्म अपराध और रोमांस की मिश्रित शैली में बनी एक क्रांतिकारी रचना थी और हॉलीवुड के ‘न्यू वेव’ युग की शुरुआत मानी जाती है।
ऑस्कर की दोहरी चमक: ‘प्लेसेस इन द हार्ट’
1984 में बेंटन ने एक और यादगार फिल्म ‘प्लेसेस इन द हार्ट’ बनाई, जो उन्होंने अपनी मां को समर्पित किया था। इस फिल्म में अमेरिकी दक्षिण के सामाजिक, आर्थिक और नस्लीय संघर्षों को मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया गया। फिल्म को ‘बेस्ट ओरिजिनल स्क्रीनप्ले’ के लिए ऑस्कर मिला और बेंटन की लेखनी और निर्देशन को एक बार फिर व्यापक सराहना मिली।
उतार-चढ़ाव से भरा करियर, फिर वापसी
हर कलाकार की तरह रॉबर्ट बेंटन के करियर में भी उतार-चढ़ाव का दौर रहा। कुछ फिल्में जैसे ‘द ह्यूमन स्टेन’, ‘बिली बाथगेट’ और ‘ट्वाइलाइट’ उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं। लेकिन उन्होंने 1994 में ‘नोबडीज फूल’ के जरिए शानदार वापसी की। इस फिल्म में पॉल न्यूमैन के अभिनय और बेंटन के निर्देशन ने उन्हें एक बार फिर ऑस्कर नामांकन दिलाया।
उनकी फिल्मों की सबसे खास बात यह थी कि वे इंसान की भावनात्मक जटिलताओं को बड़ी सहजता से परदे पर उतारते थे। वे ना सिर्फ एक निर्देशक थे, बल्कि एक कहानीकार थे जो हर दृश्य में दर्शकों की आत्मा को छू जाते थे।
आखिरी वर्षों की झलक: “मेरा परिवार फिल्मी दुनिया ही थी”
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में रॉबर्ट बेंटन ने एक साक्षात्कार में कहा था:
“ऑस्कर समारोहों में जब आप बरसों बाद किसी को देखते हैं — कुछ दोस्त, कुछ दुश्मन, कुछ जान-पहचान के लोग — तो वही मेरा असली परिवार था। और मैंने अपना पूरा जीवन उस परिवार को खोजने में बिताया।”
यह बात दर्शाती है कि उनके लिए फिल्में सिर्फ पेशा नहीं थीं, बल्कि एक भावना थीं — एक आत्मीय जुड़ाव, एक जीवनशैली, एक अस्तित्व।
सिनेमा के लिए एक अमिट विरासत
रॉबर्ट बेंटन का योगदान केवल पुरस्कारों या प्रसिद्ध फिल्मों तक सीमित नहीं था। उन्होंने सिनेमा को भावनात्मक गहराई, मानवीय दृष्टिकोण और संवेदनशील विषयों की प्रस्तुति में एक नई दिशा दी। उनकी हर फिल्म दर्शकों को कुछ सोचने, महसूस करने और भीतर से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है।
उनका निधन निश्चित रूप से फिल्म जगत के लिए एक गहरी क्षति है, लेकिन उनके बनाए हुए किरदार, संवाद और कहानियाँ उन्हें हमेशा जीवित रखेंगी।