हक़ीक़त या चालबाज़ी? पहलगाम हमले पर चीन-पाकिस्तान की “मिलीजुली प्रतिक्रिया” ने खड़े कर दिए सवाल!

चंडीगढ़, 23 अप्रैल: जम्मू-कश्मीर का हसीन पर्यटन स्थल पहलगाम, जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है, हाल ही में एक वीभत्स आतंकी हमले का गवाह बना। इस दिल दहला देने वाली घटना में 28 से ज़्यादा मासूम पर्यटक मारे गए, कई गंभीर रूप से घायल हुए और पूरे देश में ग़म और गुस्से की लहर दौड़ गई। मगर इस हमले के ठीक 24 घंटे बाद, जो कुछ हुआ, उसने सभी की भौंहें चढ़ा दीं।

दुनिया भर से संवेदनाएं आईं, लेकिन पाकिस्तान और चीन, जो अक्सर वैश्विक मंच पर एक-दूसरे के सुर में सुर मिलाते हैं, उन्होंने ठीक एक जैसे शब्दों और लगभग एक ही समय पर अपनी प्रतिक्रिया दी — वो भी 24 घंटे बाद! अब सवाल यह उठता है कि ये केवल एक “साधारण संयोग” था या फिर किसी गहरी साजिश का हिस्सा?

 हमले का तरीका: धर्म पूछकर गोलियां मारी गईं

घटना शाम के वक्त की है, जब सैकड़ों पर्यटक बैसरन घाटी की सैर पर थे। उस शांत और सुकून देने वाली जगह पर अचानक गोलियों की आवाज़ गूंजने लगी। आंखों देखी बयान करने वाले चश्मदीदों ने बताया कि आतंकियों ने पहले लोगों से उनका धर्म पूछा। जो लोग ‘कलमा’ नहीं पढ़ पाए, उन्हें वहीं गोली मार दी गई। The Resistance Front (TRF) नाम के आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली — ये संगठन दरअसल लश्कर-ए-तैयबा का ही एक नकली चेहरा है।

 चीन की प्रतिक्रिया: एक सधी हुई चाल?

हमले के ठीक 24 घंटे बाद, चीन के भारत में राजदूत शू फेइहांग ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर बयान जारी किया। उन्होंने लिखा:

“हम पहलगाम हमले से स्तब्ध हैं। आतंकवाद की निंदा करते हैं और पीड़ितों के परिवारों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हैं।”

हालांकि, इसमें कहीं भी भारत को आतंकवाद का शिकार नहीं बताया गया। शब्दों की चतुराई से भारत की पीड़ा को हल्का करने की कोशिश की गई। न तो आतंकियों की पहचान को लेकर कोई सीधा बयान आया, न ही कोई कड़ा रुख।

 पाकिस्तान: संवेदना की आड़ में राजनीति

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा:

“हम पर्यटकों के मारे जाने से चिंतित हैं और पीड़ित परिवारों के साथ संवेदना रखते हैं।”

लेकिन इसी दिन, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने टीवी पर बयान दिया कि:

“भारत में मुसलमानों, ईसाइयों और बौद्धों पर अत्याचार हो रहा है, ये हमला उसी के खिलाफ एक बगावत है।”

इतना ही नहीं, उन्होंने इस आतंकी घटना को बलूचिस्तान की आजादी की मांग से जोड़ दिया और भारत पर आतंक फैलाने का आरोप तक लगा डाला। संवेदना देने की जगह, पाकिस्तान ने मौका देखकर भारत के आंतरिक मामलों पर सवाल उठा दिए।

 एजेंसियों की जांच: साजिश सीमा पार से?

भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस हमले की योजना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में रची गई थी। इसमें शामिल नामों में सबसे प्रमुख है —

  • LeT का कमांडर सैफुल्लाह कसूरी उर्फ खालिद

  • रावलकोट का आतंकी अबू मूसा

इस हमले में 6 से ज़्यादा आतंकियों के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। इन आतंकियों का भारत में पहले से घुसपैठ करने की जानकारी भी मिल रही है।

सवाल खड़े करती प्रतिक्रियाएं: क्यों एक जैसी भाषा? क्यों एक ही टाइमिंग?

  • पाकिस्तान और चीन — दोनों देशों ने हमले के एक दिन बाद, एक जैसे लहजे में बयान दिए।

  • दोनों ने भारत को आतंकवाद का पीड़ित मानने से परहेज़ किया।

  • किसी ने भी TRF या लश्कर जैसे संगठनों का नाम नहीं लिया।

  • और सबसे बड़ी बात — दोनों ने बयान देकर भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने की कोशिश की।

क्या यह सिर्फ डिप्लोमेटिक को-ऑर्डिनेशन है या एक रणनीतिक संदेश कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला किया जाए?

दर्द के पीछे छिपा है राजनीति का जहर

पहलगाम का हमला न सिर्फ एक दर्दनाक मानवीय त्रासदी है, बल्कि इससे कहीं ज़्यादा ये दिखाता है कि भारत के विरोधी देश इस वक्त एक गहरी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं

  • चीन का “मौन समर्थन”

  • पाकिस्तान की “राजनीतिक चालें”

  • और आतंकियों की “सीमा पार ट्रेनिंग” —
    ये सब मिलकर दर्शाते हैं कि भारत को सिर्फ सरहद पर नहीं, कूटनीतिक स्तर पर भी घेरने की कोशिश की जा रही है।