निर्जला एकादशी व्रत: एक दिन जल-बिना उपवास, और पुण्य साल भर की सभी एकादशियों का!

चंडीगढ़, 6 जून:  निर्जला एकादशी, जो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, पूरे वर्ष की सभी 24 एकादशियों में सर्वोच्च मानी जाती है। अधिक मास आने पर यह संख्या 25 से 26 तक पहुंच जाती है, लेकिन निर्जला एकादशी को इन सभी में सबसे पुण्यदायी और श्रेष्ठ कहा गया है। इसका पालन करने से व्यक्ति को पूरे वर्ष की एकादशियों के व्रत के बराबर फल प्राप्त होता है।

निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा – भीमसेन की तपस्या की गाथा

इस पावन व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। जब पांडव वनवास और अज्ञातवास के कठिन समय से गुजर रहे थे, तब उन्होंने जीवन में धर्म के पालन को कभी नहीं छोड़ा। युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी प्रत्येक एकादशी का व्रत रखते थे। परंतु, भीमसेन के लिए उपवास करना अत्यंत कठिन था क्योंकि उनकी भूख अत्यधिक थी और वे लंबे समय तक भोजन और जल के बिना नहीं रह पाते थे।

युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस विषय में मार्गदर्शन माँगा। श्रीकृष्ण ने उन्हें महर्षि वेदव्यास की शरण में जाने को कहा, जो महान ज्ञानी और तपस्वी थे। वेदव्यास जी ने भीमसेन से कहा,
“यदि तुम पूरे वर्ष की एकादशियों का पुण्य प्राप्त करना चाहते हो और भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हो, तो वर्ष में एक दिन – ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी – को बिना जल और अन्न के उपवास करो। यही एकादशी तुम्हें सारे व्रतों का फल देगी।”

भीमसेन ने गुरु आज्ञा को स्वीकार करते हुए पूरे दिन बिना अन्न और जल के उपवास किया। उन्होंने इस दिन पूर्ण निष्ठा और संकल्प से भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए निर्जल उपवास रखा। अगली सुबह सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करके उन्होंने इस व्रत को पूर्ण किया।

व्रत पूरा होते ही भीमसेन को आत्मिक संतोष की अनुभूति हुई, और कहा जाता है कि उन्हें बैकुंठधाम की प्राप्ति हुई। तभी से इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

निर्जला एकादशी के धार्मिक और सामाजिक कार्य

इस दिन केवल स्वयं उपवास करना ही नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा करना भी अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। विशेषकर गर्मी के मौसम में:

  • प्यासे को जल पिलाना

  • मिट्टी के घड़े का दान करना

  • मीठे फल, खीर, और ठंडी चीजें वितरित करना

  • हाथ का पंखा या चप्पल का दान करना

  • छबील लगाना (ठंडा शरबत या जल वितरण शिविर)

इन सभी कार्यों से व्यक्ति को जीवन में शांति, पुण्य और प्रभु कृपा प्राप्त होती है। धर्मशास्त्रों में भी कहा गया है कि प्यासे को पानी पिलाना और भूखे को भोजन देना सबसे बड़ा धर्म है।

व्रत का पालन कैसे करें?

  1. एक दिन पहले रात्रि को सात्विक भोजन लें।

  2. निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लें।

  3. पूरे दिन बिना जल पिए और अन्न खाए रहें (विशेष परिस्थिति में फलाहार और तुलसी जल का सेवन किया जा सकता है)।

  4. भगवान विष्णु की पूजा करें, विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें।

  5. अगले दिन सूर्योदय के बाद जल-अन्न ग्रहण कर व्रत का पारण करें।

निर्जला एकादशी केवल एक उपवास नहीं, बल्कि आत्मनियंत्रण, सेवा और पुण्य का संगम है। इस दिन किया गया त्याग पूरे वर्ष की एकादशियों का फल प्रदान करता है। चाहे भीषण गर्मी हो या शरीर की कठिनाई, जो व्यक्ति इस दिन पूरी निष्ठा से निर्जल उपवास करता है, वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी की प्राप्ति के पथ पर अग्रसर होता है।