महिला सशक्तिकरण की दिशा में साहित्य और सुरक्षा की अहम भूमिका

महिला बाल विकास विभाग के सहयोग से आयोजित पुस्तक मेला के चौथे दिन विमर्श के पहले सत्र में ‘महिला सशक्तिकरण में साहित्य’ (Literature on women empowerment) विषय पर प्रमुख चर्चा हुई।

इस सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर पुलिस आयुक्त पंचकूला, राकेश कुमार आर्या ने कहा

कि “जब महिलाएं बिना किसी दबाव के निर्णय लेने में सक्षम होंगी, तभी वे वास्तव में सशक्त कहलाएंगी।

” उन्होंने यह भी कहा कि यदि समाज की आधी आबादी सशक्त होती है, तो समाज भी सशक्त बनेगा।

राकेश कुमार आर्या : पुलिस विभाग के प्रयासों को रेखांकित

राकेश कुमार आर्या ने महिला सुरक्षा पर पुलिस विभाग के प्रयासों को रेखांकित करते हुए बताया

कि हरियाणा में महिलाओं की सुरक्षा उनकी प्राथमिकता है और इसके लिए पुलिस विभाग विभिन्न पहलों को आगे बढ़ा रहा है।

उन्होंने समाज में महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने के महत्व को भी समझाया।

प्रख्यात साहित्यकार डॉ. शम्भूनाथ ने इस अवसर पर कहा कि आज पूरी दुनिया में भारत की महिलाएं साहित्य के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुकी हैं।

उनके मुताबिक, भारतीय महिलाओं की साहित्य रचना में गहरी छाप देखने को मिलती है।

वहीं, पुलिस उपायुक्त श्रीमती हिमाद्री कौशिक ने भी कहा कि महिलाएं हर क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयों को छू रही हैं,

लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि उनका सफर अभी खत्म नहीं हुआ है और उन्हें और अधिक अवसर मिलने चाहिए।

एनसीआरटी दिल्ली की ज्योति देशवाल

सत्र के अंत में, एनसीआरटी दिल्ली की ज्योति देशवाल, सुहानी और ओंश ने किस्सागोई के अंदाज में कहानी प्रस्तुत की,

जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। इसके बाद, एमसीएमडीएवी कॉलेज के विद्यार्थियों ने कविता प्रस्तुत की,

जिसमें महिला सशक्तिकरण और समानता के मुद्दों पर गहरी बात की गई।

सांस्कृतिक प्रस्तुति में गर्वमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल कोट, गर्वमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल खटोली

और गर्वमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल रायपुर रानी के विद्यार्थियों ने अपनी भूमिका निभाई।

विमर्श के दूसरे सत्र में मुख्य अतिथि अमनीत पी कुमार, प्रधान सचिव महिला एवं बाल विकास विभाग ने कहा,

“सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न योजनाओं का संचालन कर रही है।

जब तक समाज में स्त्री को पूरी तरह से सुरक्षित महसूस नहीं होता, तब तक देश का समग्र विकास संभव नहीं है।

” उन्होंने यह भी कहा कि महिलाएं अब साहित्य ही नहीं, बल्कि राजनीति, अर्थशास्त्र, और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

श्रीमती रजनी मोरवाल ने महिला विमर्श के मुद्दों पर बात

प्रख्यात साहित्यकार श्रीमती रजनी मोरवाल ने महिला विमर्श के मुद्दों पर बात करते हुए कहा

कि समाज में जो समस्याएं अधिक गंभीर हैं, उन्हें साहित्य के माध्यम से उजागर करना रचनाकारों का कर्तव्य है।

प्रो. उषा शर्मा ने भारतीय साहित्य में महिला सशक्तिकरण के प्रभाव को परिभाषित करते हुए महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम,

इस्मत चुगताई, और कृष्णा सोबती जैसे साहित्यकारों के योगदान को सराहा।

उन्होंने वैश्विक स्तर पर भी मार्गरेट एटवुड की “द हैंडमेड्स टेल” का उदाहरण देते हुए

महिला अधिकारों और उनके दमन पर बात की।

Literature on women empowerment : महिला सशक्तिकरण पर आधारित विमर्श

सत्र के समापन पर डॉ. अंबुज शर्मा ने महिला सशक्तिकरण पर आधारित विमर्श को समकालीन समय में स्त्री की स्थिति और दिशा के संदर्भ में आगे बढ़ाया।

उन्होंने यह सवाल उठाया कि आज की स्त्री को सशक्त बनने के लिए और कितना सफर तय करना है।

इस कार्यक्रम ने महिला सशक्तिकरण के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया और यह स्पष्ट किया

कि जब तक महिलाओं को पूरी तरह से सुरक्षित और सम्मानित महसूस नहीं होता,

तब तक समाज में सशक्त परिवर्तन संभव नहीं है।

Sakshi Dutt:

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