चंडीगढ़, 6 मई: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जातिगत जनगणना को लेकर तीन अहम सुझावों के साथ सरकार का ध्यान इस अत्यंत संवेदनशील और सामाजिक न्याय से जुड़ी मांग की ओर आकर्षित किया है। 6 मई 2025 को लिखे गए इस पत्र में खरगे ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि संवैधानिक और सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखती है।
पुराना पत्र अनसुना, अब फिर उठाई आवाज़
खरगे ने इस नए पत्र में याद दिलाया कि उन्होंने पहली बार 16 अप्रैल 2023 को भी इस विषय पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, लेकिन उन्हें आज तक उस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने कहा कि यह विषय राष्ट्रीय महत्व का है और सरकार की चुप्पी सामाजिक न्याय की प्रक्रिया को कमजोर करती है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं ने उस समय कांग्रेस पर इस मुद्दे को उठाने के लिए राजनीतिक हमले किए, जिससे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं।
तीन बड़े सुझाव जो जातिगत जनगणना के लिए जरूरी माने गए
कांग्रेस अध्यक्ष ने इस बार तीन स्पष्ट और ठोस सुझाव साझा किए हैं, जिनका उद्देश्य न केवल आंकड़ों की पारदर्शिता बढ़ाना है, बल्कि समाज के पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाना भी है।
-
सही ढंग से डिज़ाइन की गई जनगणना प्रश्नावली
खरगे ने मांग की कि गृह मंत्रालय को तेलंगाना मॉडल से प्रेरणा लेते हुए एक ऐसी प्रश्नावली तैयार करनी चाहिए जो सभी जातियों को समाहित करे। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और वास्तविक उद्देश्य होना चाहिए ताकि जातिगत स्थिति का सटीक आंकलन हो सके। -
50% आरक्षण सीमा समाप्त हो
जाति आधारित जनगणना के बाद मिलने वाले डेटा के आधार पर एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा को 50% से आगे ले जाने की आवश्यकता जताई गई है। इसके लिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15(5) का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस खंड को पहले ही वैध करार दिया है, और इसे निजी शिक्षण संस्थानों में भी लागू किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि इसके लिए संविधान संशोधन होना चाहिए। -
सभी राजनीतिक दलों के साथ चर्चा हो
खरगे ने प्रधानमंत्री से अपील की कि जातिगत जनगणना जैसे संवेदनशील विषय पर निर्णय लेने से पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए। उन्होंने कहा कि अगर सभी दलों की राय ली जाएगी, तो यह प्रक्रिया निष्पक्ष, लोकतांत्रिक और व्यापक स्वीकार्यता वाली होगी।
“जातिगत जनगणना समाज को बांटने का नहीं, न्याय देने का माध्यम है”
खरगे ने अपने पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा कि जातिगत जनगणना को विभाजनकारी करार देना गलत है। इसका असली मकसद है — समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों को अधिकार दिलाना और उन्हें मुख्यधारा में लाना। उन्होंने लिखा कि सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया कोई भी कदम देश को मजबूत बनाता है, न कि उसे तोड़ता है।
पहलगाम हमले का उदाहरण देकर दिया एकता का संदेश
खरगे ने हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए कहा कि भारत के लोग जब भी संकट आया, एकजुट होकर खड़े हुए हैं। उसी तरह, जातिगत जनगणना पर भी देश को एक साथ खड़ा होना होगा, ताकि बराबरी, समानता और सामाजिक समरसता सुनिश्चित की जा सके।
संविधान की प्रस्तावना और सामाजिक न्याय का लक्ष्य
उन्होंने दोहराया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जातिगत जनगणना को संविधान की मूल भावना का विस्तार मानती है। समान अवसर और समान भागीदारी का जो सपना संविधान में देखा गया है, वह बिना ठोस डेटा और आंकड़ों के अधूरा है। इसलिए जातिगत जनगणना आर्थिक और सामाजिक नीति निर्धारण के लिए ज़रूरी आधार है।
खरगे का संदेश: अब ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री की
पत्र के अंत में खरगे ने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे को राजनीतिक बहस से ऊपर उठकर देखेंगे और देश के हित में सभी दलों को साथ लेकर एक ठोस निर्णय लेंगे। उन्होंने आग्रह किया कि सरकार जल्द से जल्द सभी राजनीतिक दलों से मुलाकात कर इस विषय पर संवाद शुरू करे ताकि लोकतांत्रिक तरीके से समाधान निकाला जा सके।