Guru Nanak Jayanti 2024: गुरुनानक जयंती पर विशेष

Guru Nanak Jayanti 2024

Guru Nanak Jayanti 2024 : श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश राय भोंए की तलवंडी (अब पाक्स्तिान में ननकाना साहिब) में 1469 ई. में कल्याण दास मेहता जी (मेहता कालू जी) के घर माता तृप्ता जी की कोख से हुआ।

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि आपका प्रकाश 15 अप्रैल 1469 ई. (वैसाख सुदी 3, 1526 विक्रमी) को हुआ

परन्तु विश्व भर में आप जी का प्रकाश गुरपुरब काॢतक की पूॢणमा को ही मनाया जाता है।

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प्रभु की भक्ति में लीन

बचपन से ही आपका मन प्रभु की भक्ति में लीन रहता था

तथा जरूरतमंद लोगों की मदद करना आपकी आदत बन गई थी।

आपको पढऩे के लिए पंडित जी तथा मौलवी के पास भेजा गया,

ताकि आप वैदिक, गणित व अन्य ज्ञान सीख सकें

और मौलवी से आप फारसी तथा इस्लामिक साहित्य का अध्ययन कर सकें।

गुरु जी बचपन से ही संत महापुरुषों की संगत किया करते थे।

9 वर्ष की आयु में जब गुरु जी को जनेऊ पहनने को कहा गया तो आपने यह पवित्र जनेऊ पहनने से यह कहकर मना कर दिया

कि उन्हें तो ऐसा जनेऊ पहनाया जाए, जो न तो कभी टूट सके तथा न ही गंदा हो सके और न ही अग्नि उसे जला सके।

गुरू जी का कहना था कि दिखावे के लिए नहीं परन्तु वास्तव में इन धारणाओं को दिल में बसाना चाहिए।

Guru Nanak Jayanti 2024 : सच्चा सौदा

इसके बाद जब गुरु जी कुछ और बड़े हुए तो उन्हें कारोबार सिखाने के लिए 20 रुपए देकर कुछ सामान खरीदने के लिए भेजा गया,

ताकि उस सामान को वापस आकर अधिक मूल्य पर बेचकर मुनाफा कमाया जा सके,

परंतु गुरु जी ने गांव चूहडक़ाना में कई दिनों से भूखे-प्यासे बैठे संत महापुरुषों को इन 20 रुपए का भोजन खिलाया

तथा कहा कि यह सच्चा सौदा है।

जब गुरु जी घर पहुंचे तो उनके पिता जी उन पर बहुत नाराज हुए तथा चपत भी मारी,

परंतु गुरु जी की बहन बीबी नानकी जी ने अपने पिता जी को समझाया कि गुरु जी ने कोई साधारण पुरुष नहीं,

बल्कि भगवान ने उन्हें किसी विशेष कार्य के लिए भेजा है।

गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन बीबी नानकी जी के ससुराल सुल्तानपुर लोधी में थे।

बहन अपने भाई को अपने पास सुल्तानपुर ही ले आई,

जहां पर गुरु जी को मोदी खाने में नौकरी मिल गई,

परंतु गुरु जी का ध्यान यहां भी प्रभु भक्ति में लगा रहता।

जो भी जरूरतमंद आप जी के पास आता आप उसे भोजन या राशन दे देते थे।

Guru Nanak Jayanti 2024 : भूले-भटके लोगों को सत्य का मार्ग

गुरु नानक देव जी इस दुनिया पर भूले-भटके लोगों को सत्य का मार्ग दिखलाने आए थे।

अपने मिशन को वह पूरे देश-विदेश का भ्रमण करके ही पूरा कर सकते थे।

इसी आशा को लेकर आप नित्य की तरह सुल्तानपुर के निकट से बहती वेईं नदी में स्नान करने के लिए गए

और तीन दिन तक बाहर न आए।

लोगों ने सोचा कि गुरु नानक देव जी नदी में डूब गए हैं,

परंतु तीसरे दिन आप जी जब नदी से बाहर निकले तो आपने कहा कि न कोई हिन्दु न मुसलमान।

इस पर विवाद खड़ा हो गया,

परंतु गुरु जी ने सभी को समझाया कि कोई किसी भी धर्म में रहे परन्तु मनुष्य को इंसान बनना है,

इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।

चारों दिशाओं में चार लंबी यात्राएं

अपने मिशन को पूरा करने के लिए गुरु जी ने चारों दिशाओं में चार लंबी यात्राएं की,

जिन्हें चार उदासियां कहा जाता है।

इन चार यात्राओं में गुरु जी ने देश-विदेश का भ्रमण किया तथा लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

कौडा राक्षस तथा सजन ठग जैसे गुरु जी की प्रेरणा से सत्यवादी बने।

गुरु जी ने पहाड़ों में बैठे योगियों तथा सिद्धों के साथ भी वार्ताएं की

तथा उन्हें दुनिया में जाकर लोगों को परमात्मा के साथ जोडऩे के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए उत्साहित किया।

आप जी ने गृहस्थ मार्ग को सर्वोत्तम माना तथा आप भी गृहस्थ जीवन व्यतीत किया।

आप जी की शादी पक्खो की रंधावा (गुरदासपुर) के रहने वाले पटवारी मूला चोणा की सुपुत्री सुलक्षणी जी से मूला जी के पैतृक गांव बटाला में हुई। आप जी के दो पुत्र बाबा श्री चंद तथा बाबा लक्ष्मी दास जी थे।

भाई गुरदास जी के अनुसार गुरु नानक देव जी अपनी यात्राएं (उदासियां)पूरी करने के बाद करतारपुर साहिब आ गए।

उन्होंने उदासियों का भेष उतारकर संसारी वस्त्र धारण कर लिए। सत्संग प्रतिदिन होने लगा।

गुरु जी स्वयं खेतीबाड़ी का काम करने लगे तथा दूर-दूर से लोग गुरु जी के पास धर्म कल्याण के लिए आने लगे।

यहां पर भार्द लहणा जी गुरु जी के दर्शनों के लिए आए तथा सदैव के लिए गुरु जी के ही होकर रह गए।

आप जी ने अपने पुत्रों को गुरु गद्दी नहीं दी, बल्कि त्याग,

आज्ञाकारी एवं सेवा की मूर्त भाई लहना जी की कई कठिन परीक्षाएं लेने के बाद हर तरह से उन्हें गुरु गद्दी के योग्य पाकर उन्हें गुरु गद्दी सौंप दी

और उनका नाम गुरु अंगद देव जी रखा।

गुरु नानक देव जी 1539 ई. में करतारपुर साहिब में ज्योति ज्योति समा गए।