Global Warming को Warning में बदलने से पहले – पेड़ों को पूजें, प्रकृति को अपनाएं!

चंडीगढ़, 5 जून: 5 जून 2025, विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जब पूरी दुनिया पर्यावरण की चुनौतियों पर चिंतन कर रही है, तब भारतीय संस्कृति एक अमूल्य समाधान प्रस्तुत करती है – प्रकृति के प्रति श्रद्धा और संरक्षण की भावना। हजारों वर्षों से हमारी परंपरा पेड़ों, नदियों, पर्वतों, वनों और हर जीव-जंतु को ईश्वरीय स्वरूप में मान्यता देती आई है।

वृक्ष नहीं केवल वनस्पति, वे सजीव देवता हैं

हमारे पूर्वजों ने वृक्षों को सिर्फ छाया या फल देने वाला जीव नहीं माना, बल्कि उन्हें देवता का दर्जा दिया। तुलसी को देवी का स्थान मिला, वटवृक्ष को अमरता का प्रतीक माना गया, और कल्पवृक्ष को कामनाओं का पूरक कहा गया। “दशपुत्रसमो द्रुम:” – एक वृक्ष दस पुत्रों के बराबर है – यही हमारी संस्कृति का संदेश है।

वृक्ष बिना कुछ लिए हर क्षण देते हैं – फल, फूल, छाया, ऑक्सीजन, औषधि, लकड़ी और अंत में खाद तक। और यही परमार्थ का सर्वोच्च आदर्श है।

ग्लोबल वार्मिंग: प्रकृति की चेतावनी, मानवता के लिए चुनौती

विकास की अंधी दौड़ में जब इंसान ने प्रकृति के साथ संतुलन खो दिया, तब जलवायु परिवर्तन, बढ़ता तापमान, जल संकट, नई-नई बीमारियां और श्वास तक कठिन बनाने वाली हवा ने उसे घेर लिया।

ग्लोबल वार्मिंग अब सिर्फ एक तथ्य नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी बन चुकी है – Global Warming is now a Global Warning.

क्या हम समझ पाए हैं कि कोरोना जैसी महामारी ने किस तरह प्रकृति के बदले स्वरूप की झलक दी थी?

वृक्षारोपण: पर्यावरण शुद्धि ही नहीं, पितृ-कल्याण का मार्ग भी

भविष्य पुराण स्पष्ट कहता है कि जो मनुष्य वृक्ष लगाता है – विशेषकर वे जो छाया, फल और फूल देते हैं – वह अपने पितरों का उद्धार करता है। पेड़ लगाना केवल पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि धार्मिक और आत्मिक कर्तव्य है।

जिस तरह गोदान और भूमिदान को पुण्यदायी कहा गया, उसी तरह वृक्षदान भी परम पुण्य की श्रेणी में आता है। और यह पुण्य अकेले व्यक्ति का नहीं, उसकी संतति और समाज के कल्याण का मार्ग बनता है।

आज की स्थिति: प्रकृति के साथ हमारा व्यवहार

  • भारत की बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण ने हरियाली को निगल लिया है।

  • वनों और कृषि भूमि का तेजी से कम होते जाना, हमारे लिए जीवनदायिनी हवा को भी दुर्लभ बना रहा है।

  • प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और असंतुलन मानव के स्वार्थपूर्ण शोषण के परिणाम हैं।

आज वृक्षों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है, जो बिना भेदभाव के, बिना थके, बिना मांगे दिन-रात सेवा करते हैं

अब भी समय है – दिशा बदलने का

भारतीय दर्शन कहता है:
“माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:”धरती हमारी माता है, हम उसके पुत्र हैं।

अब हमें यह रिश्ता केवल श्लोकों में नहीं, बल्कि जीवन में भी उतारना होगा।

  • हर शुभ अवसर पर वृक्षारोपण करें।

  • जन्मदिन, विवाह, यज्ञ, पर्व, उत्सव – हर आयोजन को पेड़ लगाने से जोड़ें।

  • पर्यावरणीय कर्तव्यों को धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों का रूप दें।

  • संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें – जल, बिजली, भूमि, हवा – सबकी सीमा है, सबका संतुलन ज़रूरी है।

इस पर्यावरण दिवस पर हम यह संकल्प लें – कि हर पेड़ के साथ हम अपने पूर्वजों की स्मृति, अपनी संस्कृति की गरिमा, और पृथ्वी की रक्षा को फिर से जीवंत करेंगे।