हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और राजनीति के धुरंधर, Om Prakash Chautala का निधन हो गया।
उनकी अंतिम विदाई आज सिरसा के तेजा खेड़ा फार्म से की जा रही है।
पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा गया है, साथ ही उन्हें उनकी पहचान माने जाने वाली हरी पगड़ी और चश्मा पहनाया गया।
अंतिम दर्शन के लिए सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक उनका शरीर रखा जाएगा और 3 बजे उन्हें मुखाग्नि दी जाएगी।
इस मौके पर उनके राजनीतिक जीवन में एक-दूसरे से अलग दिखने वाले बेटे अजय चौटाला और अभय चौटाला भी साथ नजर आए।
इसके अलावा उनके भाई रणजीत चौटाला भी मौजूद रहे।
इस महत्वपूर्ण अंतिम संस्कार में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल जैसे बड़े नेता भी शामिल होंगे।
सियासत की धरोहर और विरासत
ओपी चौटाला का राजनीतिक जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा।
1968 में राजनीति में कदम रखने वाले चौटाला हरियाणा के उन चुनिंदा नेताओं में से थे जो पारंपरिक धोती-कुर्ता और हरे रंग की तुर्रा वाली पगड़ी को अपनी पहचान बनाए रख सके।
उनकी सादगी और अलग अंदाज ने उन्हें हरियाणा की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया।
चौटाला का मुख्यमंत्री कार्यकाल कभी सिर्फ 5 दिनों का रहा तो कभी पूरे 5 साल का।
वे अपने जिद्दी और अडिग स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे।
उनके राजनीतिक जीवन का एक रोचक किस्सा ये है
कि जब उन्होंने 1968 में ऐलनाबाद सीट से चुनाव लड़ा, तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय चुनाव में धांधली का आरोप लगाया और अदालतों तक लड़ाई लड़ी।
आखिरकार, 1970 में उपचुनाव हुआ, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की और विधायक बने।
Om Prakash Chautala – राजनीतिक शैली और प्रभाव
ओपी चौटाला हरियाणा के अंतिम मुख्यमंत्री थे,
जो पारंपरिक परिधान में नजर आते थे।
उनके बाद आए मुख्यमंत्री, जैसे भूपेंद्र हुड्डा, मनोहर लाल खट्टर और नायब सैनी ने सार्वजनिक कार्यक्रमों में इस परंपरा को नहीं निभाया।
चौटाला की हरियाणा की राजनीति पर छाप उनके हर कदम में दिखती थी।
उनके निधन के साथ ही हरियाणा ने एक ऐसा नेता खो दिया,
जिसकी पहचान राजनीति में उसके अलग अंदाज और मेहनत से थी।
चाहे उनका नेतृत्व हो या संघर्ष, चौटाला हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में हमेशा याद किए जाएंगे।