चंडीगढ़, 22 अप्रैल: हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने एक अहम फैसले में दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (डीएचबीवीएन) की लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए गुरुग्राम के निवासी शिकायतकर्ता को 5,000 रुपये बतौर मुआवज़ा देने का आदेश दिया है। यह फैसला उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में आयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यह मामला गुरुग्राम के श्री भरत यादव से जुड़ा है, जिन्होंने घरेलू उपयोग के लिए 2 किलोवाट के नए बिजली कनेक्शन के लिए 1 जनवरी 2025 को आवेदन किया था। आवेदन के बावजूद श्री यादव को लंबे समय तक डीएचबीवीएन के कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़े। न तो आवेदन खारिज किया गया, न ही उसे लेकर कोई जानकारी दी गई, जिससे वह महीनों तक मानसिक रूप से परेशान रहे। आखिरकार, 26 मार्च 2025 को उन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी किया गया, लेकिन यह प्रक्रिया बेवजह लंबी खींची गई।
आयोग की जांच में यह तथ्य सामने आया कि डीएचबीवीएन ने जानबूझकर प्रक्रिया को उलझाया और शिकायतकर्ता को मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा। आयोग ने इसे नागरिक सेवा में लापरवाही और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन का स्पष्ट मामला मानते हुए हरियाणा सेवा का अधिकार अधिनियम, 2014 की धारा 17(1)(एच) के तहत कार्रवाई की है।
जांच के दौरान यह सामने आया कि डीएचबीवीएन ने 24 दिसंबर 2024 को एक पत्र के माध्यम से बिल्डर को सूचित किया था कि एकल-बिंदु (single-point) कनेक्शन को बहु-बिंदु (multi-point) कनेक्शन में बदलने की स्वीकृति पहले ही 30 मई 2024 को निगम के पूर्णकालिक निदेशकों द्वारा दी जा चुकी थी। इसके बावजूद निगम के अधिकारियों ने ‘विद्युतीकरण योजना’ (electrification plan) की स्वीकृति के नाम पर प्रक्रिया को रोक कर रखा।
आयोग ने यह स्पष्ट किया कि जब कनेक्शन सीधे डीएचबीवीएन द्वारा दिए जा रहे हों, तो ‘विद्युतीकरण योजना’ की आवश्यकता नहीं होती। ऐसी योजना सामान्यतः कॉलोनाइज़र या सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत की जाती है। इस मामले में न केवल योजना की आवश्यकता नहीं थी, बल्कि जांच में यह भी पता चला कि डीएचबीवीएन पहले ही लगभग 4000 मीटर खरीद चुका था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कनेक्शन जारी करने की मंशा भी पहले से थी।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि निगम ने इसी प्रकार के करीब 39 अन्य कनेक्शन बिना योजना की मंजूरी के ही जारी किए थे। ऐसे में आयोग ने सवाल उठाया कि जब अन्य को यह सुविधा दी जा सकती है, तो फिर श्री भरत यादव को क्यों नहीं?
आयोग ने इस पूरे घटनाक्रम को सेवा में चूक और उपभोक्ता के साथ भेदभाव का मामला मानते हुए डीएचबीवीएन को आदेश दिया है कि वह 5,000 रुपये की मुआवजा राशि शिकायतकर्ता को तत्काल अदा करे। यह राशि निगम के फंड से दी जाएगी, और बाद में दोषी अधिकारियों से वसूली की जा सकती है।
इसके साथ ही आयोग ने प्रथम स्तर की शिकायत निवारण प्राधिकरण के रूप में कार्यरत कार्यकारी अभियंता श्री विकास यादव के रवैये पर भी नाराज़गी जताई है। उन्होंने आयोग द्वारा बुलाई गई दो सुनवाइयों में हिस्सा नहीं लिया, जिसे आयोग ने बेहद गैर-जिम्मेदाराना करार दिया। आयोग ने उन्हें भविष्य में सतर्क रहने की सलाह दी है और उनका नाम निगरानी सूची में दर्ज कर लिया है, ताकि भविष्य में उनके कार्य-प्रदर्शन पर निगरानी रखी जा सके।
यह निर्णय उन हज़ारों उपभोक्ताओं के लिए एक मिसाल है, जो विभागीय अनदेखी और असुविधा का शिकार होते हैं। आयोग ने यह भी संकेत दिया है कि उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना उसकी प्राथमिकता है, और यदि कोई विभाग या अधिकारी इसमें चूक करता है, तो उसे उत्तरदायी बनाया जाएगा।