चंडीगढ़, 7 मई: स्थित शिशु गृह में उस समय हड़कंप मच गया जब मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-सह-सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए), सुश्री अपर्णा भारद्वाज ने अचानक पहुंचकर निरीक्षण किया। उनका यह दौरा पूरी तरह से बिना किसी पूर्व सूचना के था, और इसका उद्देश्य था यह देखना कि बच्चों की देखरेख और देखभाल से जुड़ी सुविधाएं वास्तव में किस स्थिति में हैं।
निरीक्षण की शुरुआत से ही कई परेशान करने वाली स्थितियाँ सामने आने लगीं। सबसे पहले तो यह पाया गया कि जब अधिकारी वहाँ पहुँचीं, तब शिशु गृह के स्वागत कक्ष में कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति मौजूद नहीं था। न कोई कर्मचारी, न कोई देखरेख करने वाला अधिकारी। बच्चे पूरी तरह से अकेले, किसी निगरानी के बिना, अंदर मौजूद थे। यह स्थिति एक गंभीर सुरक्षा चूक को दर्शाती है, क्योंकि ऐसे में बच्चों को किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक हानि पहुँच सकती थी।
शिशु गृह का बाहरी और आंतरिक वातावरण भी निरीक्षण में बेहद खराब पाया गया। परिसर का बगीचा कचरे और गंदगी से भरा पड़ा था, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सफाई व्यवस्था बिल्कुल लचर है। जब इस बारे में पूछताछ की गई तो वहाँ के प्रभारी ने समस्या को हल करने में अपनी असमर्थता जताई और सभी जिम्मेदारियों को उच्च अधिकारियों पर डालते हुए निर्देश मांगे।
बच्चों के कमरों और रहने की जगहों में बुनियादी स्वच्छता मानकों का पालन नहीं हो रहा था। न तो साफ-सफाई का ध्यान रखा गया था और न ही बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता की गई थी। यह स्थिति उन मासूम बच्चों के लिए चिंता का विषय बन गई है, जो पहले से ही संवेदनशील मानसिक स्थिति में हैं।
निरीक्षण के दौरान एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ – परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार के पास तीन भरे हुए एलपीजी सिलेंडर खुले में रखे हुए पाए गए। यह न केवल अग्नि सुरक्षा के सभी नियमों का उल्लंघन था, बल्कि बच्चों और वहाँ कार्यरत कर्मचारियों के जीवन को भी सीधा खतरा था। कर्मचारियों ने इसे सामान्य बात कहकर टालने की कोशिश की, यह कहते हुए कि यह खाना बनाने के लिए ज़रूरी है। परंतु सुश्री भारद्वाज ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिए कि ऐसे सिलेंडरों को किसी अलग और सुरक्षित स्थान पर, जैसे कि एक अलग बनाए गए आउटहाउस में रखा जाना चाहिए ताकि कोई अप्रिय दुर्घटना न हो।
इसी निरीक्षण में यह भी सामने आया कि परिसर में लगे कई सीसीटीवी कैमरे या तो खराब थे या फिर पूरी तरह से बंद पड़े थे। यह कोई पहली बार की बात नहीं थी – पहले भी ऐसे निरीक्षणों में इसी तरह की शिकायतें सामने आ चुकी थीं, पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई। लगातार निर्देश देने के बावजूद, कैमरों की मरम्मत या उनके प्रतिस्थापन की प्रक्रिया में घोर लापरवाही बरती गई है। इस तरह की तकनीकी असफलताएँ बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की निगरानी के लिए बने पूरे ढांचे को खोखला कर देती हैं।
इन सब गड़बड़ियों और प्रशासन की गंभीर लापरवाही को देखते हुए, सुश्री अपर्णा भारद्वाज ने तुरंत पंचकूला के उपायुक्त को एक औपचारिक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने इस पूरी स्थिति पर चिंता जताई और आग्रह किया कि इस मामले में त्वरित और सख्त कार्यवाही की जाए। साथ ही, उन्होंने यह भी माँग की कि जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए और बच्चों की सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों को सर्वोपरि रखते हुए जरूरी सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।
उन्होंने यह दोहराया कि ऐसी संस्थाओं की ज़िम्मेदारी सबसे अधिक होती है, क्योंकि यहाँ वे बच्चे रहते हैं जो समाज की सबसे असहाय और निर्बल श्रेणी में आते हैं। इसलिए इस तरह की लापरवाही को बिल्कुल भी सहन नहीं किया जा सकता। देखभाल, स्वच्छता, सुरक्षा और निगरानी के सभी मापदंडों का पूरी निष्ठा से पालन अनिवार्य है, और किसी भी प्रकार की कोताही को गंभीरता से लिया जाएगा।