चंडीगढ़, 14 मई: भारतीय लोकतंत्र के स्तंभों में से एक न्यायपालिका ने एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया है। 14 मई 2025 को एक गरिमामय और ऐतिहासिक अवसर पर, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। यह समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया, जहाँ देश के कई उच्चपदस्थ अधिकारी, न्यायमूर्ति, और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति न केवल एक प्रशासनिक निर्णय है, बल्कि यह भारत के न्यायिक तंत्र की समावेशी और प्रगतिशील सोच का प्रतीक भी है। वह देश के इतिहास में इस पद को संभालने वाले केवल दूसरे अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले व्यक्ति हैं। यह एक ऐसा कदम है जो न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व और विविधता की दिशा में गहरा संदेश देता है।
न्युक्ति की प्रक्रिया: वरिष्ठता और परंपरा का समन्वय
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए जस्टिस गवई का नाम उनके उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तावित किया गया। 16 अप्रैल को जस्टिस संजीव खन्ना ने उनके नाम की सिफारिश की, जिसे सरकार ने स्वीकार करते हुए 30 अप्रैल को उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी की।
हालांकि उनका कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा—लगभग छह महीने का—होगा, लेकिन इस अवधि में उनके अनुभव, दृष्टिकोण और निष्पक्षता से न्यायपालिका को दिशा मिलने की उम्मीद की जा रही है। वे 23 दिसंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।
व्यक्तिगत पृष्ठभूमि और न्यायिक यात्रा
जस्टिस बी.आर. गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। उनके पिता आर.एस. गवई एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार व केरल के राज्यपाल रह चुके हैं। इस पृष्ठभूमि ने उन्हें सामाजिक न्याय और समावेश की भावना से ओत-प्रोत किया।
उन्होंने 1985 में वकालत की शुरुआत की और प्रारंभ में नागपुर और अमरावती के नगर निगमों के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य किया। इसके बाद वे बॉम्बे हाईकोर्ट में सहायक सरकारी वकील बने और धीरे-धीरे न्यायिक पथ पर अग्रसर होते हुए 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद तक पहुंचे।
प्रमुख और ऐतिहासिक निर्णय: जस्टिस गवई की न्यायिक दृष्टि
जस्टिस गवई के अब तक के न्यायिक कार्यकाल में कई ऐसे निर्णय शामिल रहे हैं, जिन्होंने देश की न्याय प्रणाली में नए मानदंड स्थापित किए:
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अनुच्छेद 370 पर फैसला (2023):
संविधान पीठ में उन्होंने उस निर्णय का समर्थन किया, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा समाप्त करने के निर्णय को वैध ठहराया गया। -
राजीव गांधी हत्याकांड (2022):
इस मामले में दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी गई, यह मानते हुए कि राज्यपाल ने राज्य सरकार की सिफारिश पर उचित कार्रवाई नहीं की थी। -
नोटबंदी को वैध करार (2023):
उन्होंने 2016 की नोटबंदी योजना को उचित बताया, और कहा कि यह निर्णय केंद्र सरकार व आरबीआई के परामर्श से लिया गया था। -
ईडी निदेशक का कार्यकाल (2023):
उन्होंने ईडी प्रमुख संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को असंवैधानिक माना और केंद्र सरकार को आदेश दिया कि उन्हें पद से हटाया जाए। -
बुलडोजर कार्रवाई (2024):
बिना न्यायिक प्रक्रिया के संपत्ति ध्वस्त करने को असंवैधानिक बताया, यह कहते हुए कि कानून से ऊपर कोई नहीं। -
राहुल गांधी ‘मोदी सरनेम’ मामला:
मानहानि मामले में उन्हें राहत दी गई, जिससे उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल हुई। -
तीस्ता शीतलवाड़ मामला:
सामाजिक कार्यकर्ता को ज़मानत देने का फैसला, मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण माना गया। -
दिल्ली शराब नीति मामला:
मनीष सिसोदिया और बीआरएस नेता कविता को दी गई ज़मानत ने राजनीतिक मामलों में न्यायिक संतुलन को दर्शाया।
भविष्य की दिशा और अपेक्षाएं
हालाँकि जस्टिस गवई का कार्यकाल अल्पावधि का है, परंतु उनकी न्यायिक समझ और निष्पक्ष दृष्टिकोण से यह अवधि भी प्रभावशाली साबित होने की संभावना है। उनकी नेतृत्व शैली, संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता, और न्याय के लिए गहरी समझ आने वाले महीनों में सर्वोच्च न्यायालय की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है।
उनकी नियुक्ति यह भी दर्शाती है कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था अब केवल प्रतीकात्मक समावेशिता तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि उसने सामाजिक विविधता को नेतृत्व के स्तर तक पहुँचाया है।