चंडीगढ़, 3 मई: 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम इलाके में हुए एक बर्बर आ*तंकवादी हमले ने न सिर्फ भारत को गहरे आघात में डाल दिया, बल्कि इस घटना की प्रतिध्वनि पाकिस्तान की सत्ता और सैन्य गलियारों तक भी पहुंची है। इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई, जिनमें ज़्यादातर पर्यटक थे। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की शुरुआती जांच और मीडिया रिपोर्टों से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि इस आतंकी हमले की जड़ें पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों से जुड़ी हो सकती हैं।
इस घटनाक्रम ने भारत-पाक संबंधों में एक बार फिर तनाव की स्थिति पैदा कर दी है। सबसे दिलचस्प और चिंताजनक बात यह है कि भारत की ओर से इस हमले के बाद किसी तत्काल बयान या कार्रवाई की बजाय एक सन्नाटा देखा गया—और यही चुप्पी अब पाकिस्तान के सैन्य तंत्र के लिए बेचैनी का कारण बन गई है।
इस पृष्ठभूमि में, पाकिस्तान की सेना ने 3 मई को एक आपातकालीन कोर कमांडर्स मीटिंग बुलाई, जो कि रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर (GHQ) में आयोजित हुई। इस अहम बैठक की अध्यक्षता स्वयं पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने की। यह बैठक सामान्य सैन्य समीक्षाओं से हटकर विशेष रूप से भारत की ओर से किसी संभावित जवाबी हमले—चाहे वह सर्जिकल स्ट्राइक हो या सीमापार कार्रवाई—को लेकर सेना की तैयारी और रणनीति पर केंद्रित रही।
बैठक के बाद जारी बयान में पाकिस्तानी सेना ने यह दावा किया कि देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए वे पूरी तरह प्रतिबद्ध और तैयार हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घबराहट भरी बैठकें वास्तव में भारत की चुप रणनीति से उपजे भय का ही प्रमाण हैं।
दरअसल, 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, थल, वायु और नौसेना प्रमुखों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक की थी, जिसमें पहलगाम हमले के जवाब में कार्रवाई के लिए सेना को “फुल ऑपरेशनल फ्रीडम” देने की बात कही गई थी। इसका सीधा मतलब यह है कि भारतीय सेना को यह छूट दी गई है कि वह समय, स्थान और तरीके का चुनाव खुद तय करे। यह बयान पाकिस्तान के लिए एक मौन लेकिन कड़ा संदेश था—और शायद यही वह कारण है कि पाकिस्तान की सेना को आनन-फानन में यह आपात बैठक बुलानी पड़ी।
पाकिस्तान की सरकार ने, हमेशा की तरह, इस हमले में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत पर दबाव बनाने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत के राजदूतों से मुलाकात की, जिसमें उन्होंने भारत के खिलाफ “डिप्लोमैटिक दबाव” बनाने की अपील की। लेकिन यह रणनीति कितनी प्रभावी होगी, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि कई वैश्विक थिंक टैंक और पश्चिमी खुफिया एजेंसियां लंबे समय से पाकिस्तान के भीतर सक्रिय आतंकवादी नेटवर्कों की उपस्थिति और गतिविधियों पर सवाल उठाती रही हैं।
पहलगाम हमला भी इसी कड़ी में देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भले ही इस मुद्दे पर फिलहाल शांत हो, लेकिन भारत की चुप्पी एक रणनीतिक मौन के रूप में उभर रही है, जो पाकिस्तान को कहीं अधिक असहज कर रही है। भारत ने इससे पहले 2016 में उरी और 2019 में पुलवामा हमले के बाद कड़ा जवाब दिया था—चाहे वह सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयरस्ट्राइक। इसी इतिहास को देखते हुए माना जा रहा है कि भारत फिर से कोई बड़ा कदम उठा सकता है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की यह तात्कालिक सैन्य बैठक भारत की ओर से संभावित जवाबी कार्रवाई को लेकर उनकी घबराहट को ही दर्शाती है। भारत की रणनीतिक खामोशी इस बार पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बन गई है, और इसीलिए वह अपने सैन्य ढांचे को हाई अलर्ट पर ले आया है।