पहली बार ‘बीटिंग द रिट्रीट’ सेरेमनी में ऐतिहासिक बदलाव, भारत ने कीं तीन सीमाएं सील!

चंडीगढ़, 25 अप्रैल: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए कायराना आतं*की हमले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान की धरती से पोषित आतंकवाद, दोस्ती और शांतिपूर्ण संबंधों की किसी भी पहल को सफल नहीं होने देता। इस हमले के बाद भारत सरकार ने तत्काल और निर्णायक कार्रवाई करते हुए एक बड़ा कदम उठाया है।

भारत ने अटारी, हुसैनीवाला और सदकी बॉर्डर को अस्थायी रूप से बंद करने का फैसला लिया है। यह निर्णय केवल सुरक्षा के लिहाज़ से नहीं, बल्कि पाकिस्तान को एक ठोस और स्पष्ट संदेश देने के उद्देश्य से भी लिया गया है—अब भारत की चुप्पी नहीं, कार्रवाई बोलेगी।

इस निर्णय का सीधा असर अटारी-वाघा बॉर्डर पर हर दिन आयोजित होने वाली विश्व प्रसिद्ध ‘बीटिंग द रिट्रीट’ सेरेमनी पर भी साफ देखा गया। इस बार का दृश्य वर्षों से चली आ रही परंपरा से बिल्कुल अलग था। न बॉर्डर के गेट खोले गए, न ही भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच कोई परंपरागत हाथ मिलाना हुआ। सेरेमनी शांतिपूर्ण, गंभीर और पूरी तरह से सादगी भरे अंदाज़ में आयोजित की गई।

स्वतंत्रता के बाद यह पहला अवसर था जब यह समारोह इतनी खामोशी के बीच संपन्न हुआ। न दर्शकों का उत्साह, न सैनिकों का पारंपरिक जोश—हर ओर एक गहरी संजीदगी और गंभीरता का माहौल छाया रहा। यह बदलाव अचानक नहीं था, बल्कि भारत की बदलती कूटनीतिक सोच और रणनीति का संकेतक है।

भारत ने यह दिखा दिया है कि वह अब हर आतंकी हरकत का जवाब केवल शब्दों से नहीं, ठोस कदमों से देगा। यह संदेश केवल पाकिस्तान के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए है कि भारत अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और नागरिकों की रक्षा के लिए किसी भी स्तर पर जाने को तैयार है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमाओं पर इस तरह की कार्रवाइयाँ केवल जवाबी उपाय नहीं हैं, बल्कि यह भविष्य की दिशा तय करने वाली रणनीतियों का हिस्सा हैं। भारत अब यह स्पष्ट कर चुका है कि बातचीत तभी संभव है जब सीमा पार से आतंकवाद की घातक साजिशें पूरी तरह बंद हों।

अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निगाहें भारत-पाक संबंधों पर और अधिक गंभीरता से टिकी हुई हैं। सीमा पर बना यह तनाव केवल दो देशों के बीच की कूटनीतिक टकराहट नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और सुरक्षा से भी जुड़ा मुद्दा बन चुका है।